क्या स्वयं प्रकाशन लाभदायक व्यवसाय हो सकता है? (भाग 2)

Image
इस लेख के शीर्षक पर आधारित श्रृंखला में यह दूसरा प्रकरण है| इस लेख में उन आँकड़ों पर चर्चा एवं व्याख्यान है जो पिछले एक साल में सामने आयें हैं| अगर आप पूछें, “चुनीलाल पिछले एक साल में क्या किया और शीर्षक में लिखे प्रश्न पर अब क्या कहना है?” तो उस की भी कथा है| पिछले दस महीनों में मैंने एक नया काम किया| मैंने अपनी पुस्तकों का प्रकाशन  Google   Play   Books  पर किया है |  अब मेरी पुस्तकें  Amazon  और  Google   Play   Books  पर भी उपलब्ध हैं|   पहले  Google   Play   Books  की कथा 28 मार्च, 2020 को मैंने अपनी पुस्तकें  Google   Play   Books  पर डालनी शुरू कीं| मेरे पास अपनी पुस्तकों का  manuscript  तो पहले से तैयार पड़ा था| वह पुस्तकें  Amazon  पर पहले से प्रकाशित थीं |  इस लिए, मुझे  Google   Play   Books  पर अपनी पुस्तकों का  Catalogue  बनाने में ज्यादा समय नहीं लगा| इस में केवल एक बंदिश से निकलने में समय लगा| मेरी पहली लिखी हुई पुस्तकें  Amazon  पर पहले ही उपलब्ध थीं| मैंने सभी को  Kindle   Select   Programme  में डाल रखा था| उस से बहार निकलने में मुझे तीन महीने लग गए थे |  परन्तु 2020 के

Kindle Select से जुड़ीं विषमताएं

यह लेख अनुभव के आधार पर लिखा एक संस्मरण है| इस लेख में अन्वेषण पर आधारित तथ्यों की व्याख्या नहीं है|

इस लेख का संबंध Kindle Direct Publishing में Kindle Select योजना से है| Kindle Direct Publishing पर मैंने एक पुस्तक भी लिखी है जिस का शीर्षक है हिंदी में लिखी पुस्तक को प्रकाशितकरने की सुनहरी किताब. यह पुस्तक Amazon पर उपलब्ध है. इस का फेसबुक page भी है जिस पर आप यहाँ पर click कर के पहुँच सकते हैं. इस पुस्तक में मैंने Kindle Select Programme को अपनाने की पुर्जोर सिफारिश की है.

 

February 2020 में मैंने Google Partnership programme की सदस्यता प्राप्त कर ली. उस समय यह विचार सामने आया कि मैं Kindle के माध्यम से मुद्रित पुस्तकों को Google Play पर भी उपलब्ध करूं.

 

Kindle Select योजना की यह शर्त मुझे अच्छी तरह से मालूम थी कि जब तक Kindle Select में पुस्तक उपलब्ध है, उस पुस्तक को प्रकाशक यां लेखक किसी और ई-पटल खुद से ही नहीं उपलब्ध करा सकता. अगर लेखक या प्रकाशक ऐसा करना चाहता है तो उस के लिए उसे Kindle Select योजना को छोड़ना पड़ेगा| अगर उस योजना को छोड़ने की इच्छा दर्ज कर दी जाती है तो उस के लिए 90 दिन तक का भी इन्तेजार करना पड़ सकता है.

 

मैंने Google Play पर अपनी पुस्तकें उपलब्ध करने का मन बना लिया था. मैंने इस के मंशा KDP पटल पर दर्ज कर दी. अब यहाँ मुझे एक और बात पता चली जो कि मुझे पहले ध्यान में नहीं आई थी| अगर आप Kindle Select के सदस्य नहीं हो तो आप 70 प्रति शत रॉयल्टी प्लान के हकदार नहीं हो. यह विषमता मुझे इस प्रकार पता चली.

 

इसी के अलावा, Kindle Select के सदस्य नहीं रहने पर आप Amazon और Kindle की भिन्न-भिन्न  प्रतियोगितायों में भाग नहीं ले सकते.

 

अगर आप Kindle Select के सदस्य नहीं हो तो आप की पुस्तक विशेष मूल्य कटौती के लिए उपलब्ध नहीं हो सकती.

 

अगर आप Kindle Select के सदस्य नहीं हो तो आप की पुस्तक पर Kindle Unlimited का निशान नहीं लगा दिखेगा और यह Kindle पाठकों की विभिन्न योजनायों के अंतर्गत उपलब्ध नहीं होगी.

 

Google Playbook पर पुस्तकों को उपलब्ध करने से Kindle Select योजना जो छोड़ना पड़ता है. यह एक मुश्किल निर्णय है.

 

जानकार लोक बताते हैं कि eBooks का साठ प्रतिशत बाज़ार Amazon और Kindle के पास है. बाकी का बाज़ार Kobo, Nook, Ipad और google में बटा हुया है. परन्तु google पर google preview विकल्प मिलता है जो कि बहुत विस्तृत और प्रचलित है. Google Public Domain की पुस्तकें मुफ्त में उपलब्ध कराती है जिस की scanning ज्यादा अच्छी होती है| कुल मिलाकर google पुस्तकों की उपलब्धता का एक प्रचलित माध्यम है.

 

यह मेरा अपना ही अंदाज़ा है कि भारतीयों में google ज्यादा लोकप्रिय है. Apps उतारने के लिए Google Play का प्रयोग ज्यादा रहता है, ऐसा मेरा अंदाज़ा है. Kindle के संबंध में हिंदी भाषी पाठकों में ज्यादा जागरूकता शायद नहीं है. परन्तु google को सभी जानते हैं. हर Android Mobile पर google suit default app के रूप में आने लग गया है. इस लिए, google पर पुस्तकों का वाचन भी बढ़ना चाहिए, ऐसा मेरा मानना है. इस लिए google पर मैंने अपनी पुस्तकें डाल दी है. इस लिए मुझे Kindle Select योजना को त्यागना पड़ा है. ऐसा करने पर मुझे जिन विषमता का सामना करना था और जो नई बात मुझे स्पष्ट हुई उन सब की चर्चा मैंने इस लेख में कर दी है|  

 

Comments

Popular posts from this blog

Going for Google Play Books this time

क्या स्वयं-प्रकाशन लाभदायक व्यवसाय हो सकता है? (भाग 1)

क्या स्वयं प्रकाशन लाभदायक व्यवसाय हो सकता है? (भाग 2)